हाल ही में प्राणपुर, लाडपुरा खास और सबरवानी जैसे गांवों ने अपनी मेहनत से पर्यटन के क्षेत्र में पहचान बनाई है, जबकि भोपाल के गांवों का हाल पूरी तरह से विपरीत है। यहां की ग्राम पंचायतों में केवल घोटालों और अनियमितताओं की खबरें आती हैं।
मुगालिया हाट में सरकारी जमीन पर कब्जे की होड़ और सरपंच के परिजनों द्वारा की जा रही धांधलियों ने प्रशासन की जिम्मेदारी पर सवाल उठाया है। इन समस्याओं का मुख्य कारण स्थानीय नेतृत्व की लापरवाही और प्रशासन की निष्क्रियता है।
अगर प्राणपुर और अन्य गांवों ने ऐसे ही जनप्रतिनिधि चुने होते, तो क्या उन्हें भी सफलता मिलती? निश्चित रूप से, ऐसे प्रतिनिधियों से गांवों का विकास संभव नहीं है। हमें विचार करना होगा कि क्या हम ऐसे मुखिया को चुनने के लिए दोषी नहीं हैं, जो केवल अपने स्वार्थ के लिए काम कर रहे हैं।