ग्वालियर: हाल में हुए एक अध्ययन में 12,000 छात्रों की काउंसलिंग के बाद सीबीएसई के रिसोर्स पर्सन ने डिजिटल दुनिया के प्रभावों का खुलासा किया है। शोध के अनुसार, बच्चों का बचपन और संयम तेजी से डिजिटल माध्यमों की चकाचौंध में खो रहा है।
13 वर्षीय यश (परिवर्तित नाम) की कहानी इस बदलाव का उदाहरण है। स्कूल से लौटने के बाद, वह पहले मोबाइल पर रील्स देखने में समय बिताता है, जिससे उसके अन्य कार्य प्रभावित होते हैं। हाल के वर्षों में, माता-पिता की व्यस्तता और परिवार में समय की कमी ने बच्चों को सोशल मीडिया की लत का शिकार बना दिया है।
कुछ उदाहरण:
- जिद पूरी न होने पर गुस्सा: 15 वर्षीय एक लड़की ने लैपटॉप मांगने पर माता-पिता के मना करने पर नाराज होकर मोबाइल तोड़ दिया और घर से भाग गई। इस घटना ने दिखाया कि बच्चों का गुस्सा और जिद कैसे बढ़ रही है।
- खतरनाक निर्णय: मुरैना में एक बच्चे ने गेम में टारगेट पूरा करने के लिए छत से कूदकर जान दे दी। इससे स्पष्ट होता है कि बच्चे अपनी सुरक्षा को दांव पर लगाते हैं।
माता-पिता की भूमिका
काउंसलिंग एक्सपर्ट ने बताया कि माता-पिता की ओवरपेंपरिंग बच्चों के बिगड़ते व्यवहार का एक बड़ा कारण है। 80% मामलों में बच्चों की हर जिद पूरी की जाती है, जिससे वे बड़े होने पर निराशा और गुस्से का सामना करते हैं।
इसलिए, माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों के साथ समय बिताएं और हर मांग को तुरंत न मानें। यह आवश्यक है कि वे बच्चों को सीमाएं समझाएं ताकि वे डिजिटल दुनिया के नकारात्मक प्रभावों से सुरक्षित रह सकें।